ये कहानी भी उसी वक्त की है जब में हॉस्टेल में रहा करता था. मुझे आज भी याद है मेरा पहला दिन जब में सिर्फ १४ साल का था और मेरे माँ-बाप मुझे छोड़ने आए थे. सब लोगो के आखो में आसु थे, न जाने सिर्फ में ही मुस्कुरा रहा था. मुझसे पेहेले से रहने वाले बच्चे भी लिपट कर फुट-फुट कर रो रहे थे. मेरी मुस्कराहट मेरे एहसास को बया नही कर रही थी, वह तोह मेरे माँ-बाप को होसला दे रही थी की में उन लोगो में से नही हु जो हार मान ले या ज़िन्दगी के एक मोड़ पर लड़खड़ा जाऊ. में उन लोगो में से था जिसे अब आज़ाद रहना सीखना था, अपने सपनो को बुनना था, अपना वजूद बनाना था. जाते-जाते मेरे माँ की आखो में कुछ अश्क आ ही गए थे जो कुछ देर में बाँध से छूटने वाले थे और मेरे पापा की आखे नम हो गयी थी जिन्हे में पहेली बार नम देख रहा था.
Saturday, 11 October 2014
ज़िन्दगी सबको एक ही बार मिलती है... सिर्फ एक बार!!!
ये कहानी भी उसी वक्त की है जब में हॉस्टेल में रहा करता था. मुझे आज भी याद है मेरा पहला दिन जब में सिर्फ १४ साल का था और मेरे माँ-बाप मुझे छोड़ने आए थे. सब लोगो के आखो में आसु थे, न जाने सिर्फ में ही मुस्कुरा रहा था. मुझसे पेहेले से रहने वाले बच्चे भी लिपट कर फुट-फुट कर रो रहे थे. मेरी मुस्कराहट मेरे एहसास को बया नही कर रही थी, वह तोह मेरे माँ-बाप को होसला दे रही थी की में उन लोगो में से नही हु जो हार मान ले या ज़िन्दगी के एक मोड़ पर लड़खड़ा जाऊ. में उन लोगो में से था जिसे अब आज़ाद रहना सीखना था, अपने सपनो को बुनना था, अपना वजूद बनाना था. जाते-जाते मेरे माँ की आखो में कुछ अश्क आ ही गए थे जो कुछ देर में बाँध से छूटने वाले थे और मेरे पापा की आखे नम हो गयी थी जिन्हे में पहेली बार नम देख रहा था.
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